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लेखनी कहानी -16-Jan-2023 4) वो कक्षा 8 तक वाला स्कूल ( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन )



शीर्षक = वो कक्षा 8 तक वाला स्कूल




एक बार फिर हाजिर हूँ लेकर अपने स्कूल / कॉलेज के किस्से आप सब के समक्ष, अब तक जो कुछ हमने अपने संस्मरण में बताया कि किस तरह उस लाल बिल्डिंग वाले स्कूल से हमने शिक्षा के पायदान पर पहला कदम रखा और अपनी प्रारंभिक शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए उस स्कूल को छोड़ एक दुसरे स्कूल में दाखिला लिया


जो कि इस स्कूल की भांति हमारे घर से नजदीक था, उस स्कूल को छोड़ने का मुख्य कारण तो मुझे नही मालूम बस किसी ने बताया था , कि वो स्कूल अभी नया खुला है, इसलिए उसकी पढ़ाई अच्छी है, और फीस भी ज्यादा नही है, इसलिए हमारी अम्मी ने हमारा दाखिला उस स्कूल में करा दिया

वो वाक़यी एक अच्छा स्कूल था, उसकी पढ़ाई भी अच्छी थी और तो और उस स्कूल में अलग अलग कक्षाओं में पढ़ने के लिए अलग अलग कि कक्षा भी बनी हुयी थी और मेज कुर्सियां भी थी, जिस पर बैठ कर पढ़ने पर अमीरो वाली फीलिंग्स आती थी उसी के साथ साथ लंच टाइम में वहाँ एक चाचा अपनी दुकान लगाते थे, जिनके पास उस समय की बच्चों द्वारा पसंद की जाने वाली चीज़े होती थी, रंग बिरंगा चूर्ण, खट्टी मीठी इमली, एक तरह की कचरी लेकिन उनसे कम बच्चें ही खरीदते थे ऐसा इसलिए क्यूंकि ज्यादातर बच्चें घर से ही खाना लेकर आते थे, और बच्चों को पैसे देकर स्कूल नही भेजा जाता था, बस कुछ ही बच्चें घर से पैसे लाते थे


उस स्कूल में गुज़रा एक लम्हा जो की एक याद गार लम्हा बन कर आज़ भी मेरे जहन में कही ना कही अपनी जगह बनाये हुए है, उसे मैं आप लोगो के साथ साँझा करूंगा इस बहाने मुझे उसे लिखने का भी मौका मिल जाएगा


जैसा की हमने बताया की उस समय बहुत कम बच्चों को ही स्कूल के लिए पैसे मिलते थे, ज्यादातर बच्चें घर से ही खाना लेकर आते थे और कुछ घर पर खाना खाने चले जाते थे, ज्यादातर बच्चों का घर नजदीक में ही था, कभी कभी हम भी चले जाया करते थे, अगर हमें देर हो जाती थी स्कूल जाने के लिए 


एक दिन हमारे स्कूल का लंच टाइम चल रहा था, हम सब बच्चें बाहर खेल रहे थे, बाहर से मतलब स्कूल से बाहर यानी की सडक पर, शनिवार का दिन था, शनिवार का दिन इसलिए अभी तक याद है , क्यूंकि शनिवार का दिन हमारे लिए एक महत्वपूर्ण दिनों में से एक हुआ करता था कभी, उस दिन का इंतजार हमारे साथ साथ हमारे सब ही भाई बहनो को बेसब्री से हुआ करता था


उस दिन ऐसा क्या होता था? आप सब के मन में विचार आ रहा होगा चलिए बता देता हूँ, दरअसल हमारे पापा, हमारे घर से कुछ दूरी पर काम करते थे, जिसके चलते वो वही रहते थे, रोज़ रोज़ आना जाना आसान नही था उस समय इतनी सहूलत भी नही थी आने जाने की, हमारी तरफ का हाईवे भी ज्यादा अच्छा नही था, अब तो काफ़ी अच्छा हो गया है, उस समय की तुलना में


जहाँ हमारे पापा काम करते थे, वहाँ हफ्ते में जो छुट्टी होती थी वो शनिवार को होती थी, इसलिए शनिवार के दिन का हम सब को बेसब्री से इंतज़ार रहता था, और अगले दिन रविवार जिसके आने की ख़ुशी किसी मेहमान के आने की ख़ुशी से कम नही होती थी स्कूल के दिनों में


तो हम कहा थे, हम लंच टाइम में बच्चों के साथ खेल रहे थे, तब ही हमने दूर से अपने पापा को आते देखा जो की उसी रास्ते से गुज़ार कर घर की और जाया करते थे, वैसे तो उन्हें आते आते अकसर दोपहर या कभी कभी तीसरा पहर हो जाता था, लेकिन उस दिन ना जाने कैसे वो जल्दी आ गए थे


हमारा बेहद अरमान था बचपन से ही, कि ज़ब हम स्कूल जाए तो पापा से पैसे लेकर जाए चीज के लिए, ऐसा नही है कि हमें पैसे मिलते नही थे, लेकिन फिर भी और बच्चों कि भांति हमारा भी मन करता था कि हम स्कूल के किये पापा से पैसे लेकर आये, लेकिन वो काम की वजह से 6 दिन बाहर रहते थे और शनिवार को आते थे


उस दिन ज़ब हमने अपने पापा को देखा तो दौड़े चले गए उनकी तरफ, उस दिन मानो हमारी दुआ क़ुबूल हो गयी थी, हमारे पापा ने अपनी जेब से दो रूपये निकाल कर दिए अब तो दो रूपये की कोई एहमियत नही आज़ कल के बच्चों की नज़र में लेकिन जो अठन्नी और चवन्नी पाकर खुश हो जाते हो उनके लिए दो रूपये एक बहुत बडी रकम होती थी, वो दो रूपये पाकर वो भी पापा से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो जन्नत मिल गयी हो, वो दिन आज़ भी हमें अच्छे से याद है, उस दो रूपये से जो कुछ खरीदने का हमारा मन था सब खरीद लिया था, लेकिन इस बात का भी डर था कि कही अम्मी को पता चला दो रूपये के बारे में तो क्या होगा, क्यूंकि हमें पापा से ज्यादा अपनी अम्मी से मार खाने का डर लगता था, लेकिन सारी चिंताओं को एक तरफ रख उन दो रुपयों का आंनद लिया जो पापा से मिले थे, वो दिन और उस दिन की वो याद उस स्कूल के सुनहरे दिनों की याद में से एक है



ज़ब से पापा इस दुनिया से गए तब से तो पता ही नही चलता कब शनिवार आता है और कब चला जाता है, अब ना शनिवार का इंतज़ार रहता है और ना ही रविवार का अब तो बस सवेरा होता है, दोपहर होती और फिर शाम हो जाती है, मानो समय को किसी ने चाबी से घुमा सा दिया है, जो बस दौड़े जा रहा है,


ऐसे ही किसी और याद गार लम्हें को जिसे वक़्त ने बहुत पीछे छोड़ दिया है, समय मिलते ही उसे आप सब के साथ रूबरू कराने जल्द हाजिर हूँगा तब तक के लिए अलविदा


स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिन 





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2 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:41 PM

Nice

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Rajeev kumar jha

23-Jan-2023 04:49 PM

Nice 👍🏼

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